swadeshi jagran manch logo
News Image

भारत पर बढ़ता दुनिया का भरोसाः भारत और ब्रिटेन ने किये मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर

ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार होने से भारत के कृषि उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। — अनिल तिवारी

 

तीन वर्षों से अधिक अवधि की जद्दोजहज के बाद आखिरकार लंदन में भारत-ब्रिटेन के बीच मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) हो ही गया। समझौते से उत्साहित दोनों देशों की सरकारों ने समझौता को ऐतिहासिक करार दिया है। इस समझौते के तहत दोनों देश आपसी व्यापार को 2030 यानी अगले चार-पांच सालों में 120 अरब यूएस डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य रखा है। भारत और ब्रिटेन के बीच यह द्विपक्षी समझौता ऐसे समय में सामने आया है जब अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप अपनी शर्तों पर अन्य देशों को आर्थिक मसलों पर प्रभावित और संचालित करने की कोशिश कर रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अमेरिका अपनी सुविधा के मुताबिक फैसला लेते हुए बेलगाम शुल्क और इससे आगे पाबंदी लगाने तक की बात करता रहा है। ऐसे में यह  व्यापार समझौता किस रूप में सामने आएगा, वह तो दोनों देशों के बीच भविष्य में होने वाले कार्य व्यवहार से पता चलेगा। वैसे भी दो देशों के बीच होने वाली बातचीत जब तक द्विपक्षी और सामान हित सुनिश्चित करने की नीति पर आधारित नहीं होती तब तक उसका हासिल भी कुछ ठोस नहीं निकलता। 

भारत और ब्रिटेन के बीच में ताजा करार इस बात का उदाहरण है कि दो देशों के बीच एक समझौते को कैसे एक बेहतर स्वरूप दिया जा सकता है। विकसित देशों की ओर से जिस तरह से अपने फायदे में शर्त आधारित संबंधों को कूटनीति का फार्मूला बनाया जाता रहा है, उसमें भारत को भी अपने हित के प्रति सजग और सतर्क रहने की जरूरत है। क्योंकि ब्रिटेन के साथ हुए हालिया समझौते के बाद अन्य देशों के साथ चल रही व्यापार वार्ता पर असर पड़ना लाजमी है।

भारत और यूरोपीय संघ के बीच लंबे समय से लंबित एफटीए वार्ता चल रही है। ब्रिटेन के साथ सफल समझौते से अब ईयू पर दबाव बढ़ेगा कि वह भी भारत के साथ जल्दी समझौता करे। यदि ब्रिटिश कंपनियां भारत में तेजी से निवेश करती हैं तो यूरोपीय कंपनियों को प्रतिस्पर्धा में नुकसान हो सकता है।

अमेरिका और भारत के बीच अब तक कोई पूर्ण एफटीए नहीं हुआ है। ब्रिटेन के साथ हुए इस समझौते को देखकर अमेरिका भारत के साथ व्यापार सहयोग को पुनर्संतुलित कर सकता है। साथ ही अमेरिका यूके के साथ अपने ट्रांस अटलांटिक व्यापार संबंधों को भारत के साथ यूके की नई निकटता के संदर्भ में पुनर्मूल्यांकित कर सकता है।

भारत ने हाल ही में ऑस्ट्रेलिया के साथ ‘इंडस ईसीटीए’ और कनाडा के साथ प्रस्तावित एफटीए वार्ता की है।यूके के साथ हुआ यह समझौता मॉडल एग्रीमेंट के रूप में पेश किया जा सकता है, जिससे भारत अन्य देशों से भी समान या बेहतर शर्तों की मांग कर सकता है। 

भारत जैसे विकासशील देश का एक विकसित देश के साथ संतुलित और लाभकारी एफटीए करना दक्षिणी देशों के लिए एक प्रेरणा मॉडल बन सकता है। इससे वैश्विक दक्षिण की सौदेबाजी की शक्ति मजबूत हो सकती है और वे अपने व्यापारिक हितों को वैश्विक पटल पर अधिक मजबूती से रख सकेंगे।

ब्रिटेन ने ब्रेक्सिट के बाद राष्ट्रमंडल देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की रणनीति अपनाई है। भारत के साथ यह समझौता इस दिशा में प्रारंभिक और प्रतीकात्मक सफलता है। इससे अन्य राष्ट्रमंडल देश जैसे नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका, मलेशिया भी ब्रिटेन के साथ व्यापारिक रिश्तों में पुनर्समीक्षा कर सकते हैं।

देश के कई अर्थशास्त्रियों का मानना है कि भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता एक द्विपक्षीय करार होते हुए भी बहुपक्षीय प्रभावों वाला समझौता है। यह न केवल क्षेत्रीय प्रतिस्पर्धा को प्रभावित करेगा बल्कि वैश्विक व्यापार नीति, रणनीतिक साझेदारी और एफटीए मॉडलिंग की दिशा को भी प्रभावित करेगा। ऐसे में इस समझौते को सिर्फ दो देशों के बीच का आर्थिक सहयोग न मानकर भविष्य की वैश्विक आर्थिक दिशा के संकेत के रूप में देखा जा सकता है।

पिछले कुछ वर्षो में जिस तरह से संरक्षणवाद बढ़ा है, उसमें ऐसे व्यापार समझौतों की भूमिका अहम हो जाती है। इस समझौते से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने न केवल अमेरिका, बल्कि अन्य देशों को भी भारत की मजबूत होती स्थिति का आईना दिखाया है, जो उनकी दूरगामी राजनीति का द्योतक है। 

इस समझौते को मौजूदा दौर में दुनिया भर में जारी बहुस्तरीय तनाव, दबाव एवं दादागीरी की राजनीति के बीच सूझबूझभरी कूटनीतिक कामयाबी के तौर पर देखा जा सकता है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुल्क के मोर्चे पर एक बड़ा  संकट खड़ा कर दिया है, लेकिन भारत ने इस द्वंद्व के सामने झुकने की बजाय नये रास्ते खोजे हैं। निश्चित ही यह समझौता महज कागजी करार भर नहीं है, बल्कि ‘विकसित भारत 2047’ के स्वप्न को मूर्त रूप देने की ठोस रणनीति है। जहां एक ओर यह समझौता 99 प्रतिशत टैरिफ को समाप्त कर वस्त्र, चमड़ा, समुद्री उत्पाद, कृषि और रत्न-आभूषण जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों को नई उड़ान देगा, वहीं छोटे उद्यमों, मछुआरों और किसानों को वैश्विक मंच पर पहचान भी दिलाएगा। भारत के ग्रामीण अंचलों से हल्दी, दाल, अचार जैसे उत्पाद अब ब्रिटिश बाजारों में अपनी महक फैलाएंगे।

मोदी सरकार ने पिछले एक दशक में जिस प्रकार से गुणवत्ता, प्रतिस्पर्धा और पारदर्शिता पर जोर दिया है, उसी का परिणाम है यह करार। इससे यह भी सिद्ध हुआ कि भारत अब केवल बाजार नहीं, बल्कि निर्णायक शक्ति भी बन चुका है। यह समझौता सेवा क्षेत्र, शिक्षा, वित्तीय सेवाएं, निवेश, सामाजिक सुरक्षा, और दोहरे कराधान जैसे क्षेत्रों में भी भारतीयों के लिए नये द्वार खोलता है। खासकर ब्रिटेन में काम कर रहे भारतीय पेशेवरों के लिए यह राहत का संदेश है, जिन्हें सामाजिक सुरक्षा अंशदान से छूट मिल सकेगी। यह समझौता इसलिए भी महत्त्वपूर्ण है कि अब तक अमेरिका की ओर से पैदा किए गए किसी भी दबाव के आगे भारत ने झुकना स्वीकार नहीं किया और उसने भारत-ब्रिटेन जैसे नये विकल्पों को खड़ा करने और पुराने को मजबूत करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। प्रधानमंत्री मोदी के मेड इन इंडिया संकल्प की दृष्टि से यह डील अहम है। इससे करीब 99 प्रतिशत निर्यात यानी यहां से ब्रिटेन जाने वाली चीजों पर टैरिफ से राहत मिलेगी। इसी तरह ब्रिटेन से आनी वाली चीजें भारत में सस्ती मिल सकेंगी जिससे आम लोगों को अधिक गुणवत्ता वाला सामान सस्ते में सुलभ होगा और उनके जीवन स्तर में व्यापक सुधार होगा। इससे मैन्युफैक्चरिंग को बढ़ावा मिलेगा। ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग में भारत की हिस्सेदारी 2.8 प्रतिशत है, जबकि चीन की 28.8 प्रतिशत।

इसी तरह, देश की जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग का योगदान 17 प्रतिशत है और सरकार इसे 25 प्रतिशत तक बढ़ाना चाहती है। इस तरह की डील से राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय, दोनों स्तर पर प्रदर्शन में सुधार होगा। कृषि सेक्टर को उन्नत बनाने एवं अधिक उत्पाद की दृष्टि से भी व्यापक फायदा होगा। 

इस समय भारत की बातचीत अमेरिका से भी चल रही है लेकिन वहां कृषि और डेयरी प्रॉडक्ट्स को लेकर रस्साकशी है। अमेरिका इन दोनों क्षेत्रों में खुली छूट चाहता है, जबकि अपने लोगों के हितों को देखते हुए भारत ऐसा नहीं कर सकता। ब्रिटेन के साथ मुक्त व्यापार होने से भारत के कृषि उद्योग को बढ़ावा मिलेगा।    

Share This

Click to Subscribe