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निजीकरण की नहीं, प्रोफेशनल प्रबंधन की दरकारः डॉ. महाजन

बैंकों के निजीकरण को कठघरे में खड़ा करते हुए स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सहसंयोजक डॉ. अश्वनी महाजन ने कहा है कि किसी भी रूप में यह अच्छा नहीं है। किसी को भी चाहे व निजी व्यवसायिक घराना हो या विदेशी, सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को उनके हाथों में सौपना ठीक नहीं है। निजी हाथों में जाने से बैंकों का एकाधिकार बढ़ेगा। उपभोगताओं की परेशानी बढ़ेगी और बैंक राष्ट्रीयकरण के पहले वाली स्थिति की तरफ बढ़ जायेंगे। महाजन का कहना है कि केंद्र सरकार को चाहिए वह निजीकरण के बजाए बैंक में अपना दखल कम करें और प्रोफेशनल प्रबंधन को बढ़ावा दे। 

मालूम हो कि पहले भी बैंकों का संचालन निजी हाथों में था। पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मुनाफा कमाकर अपने सेठों की तिजोरी भरने वाले बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। अब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी क्या इंदिरा गांधी के इस कदम को पलटने जा रहे हैं? केन्द्र सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को फिर निजी हाथों में देने के रास्ते पर बढ़ रही है। इसे लेकर बैंकों के कर्मचारी हड़ताल पर हैं। इस बीच प्रधानमंत्री मोदी ने ‘सरकार का काम व्यवसाय करना नहीं है’, यह कहकर बैंकों के निजीकरण जैसे कदम की मजबूत वकालत की है। लेकिन प्रधानमंत्री के इस निर्णय पर स्वदेशी जागरण मंच के साथ-साथ अन्य संगठनों ने भी सवाल उठाया है।

रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने इसे गलत कदम बताते हुए सरकार को बैंकों में दखल कम करने और इनके संचालन में पेशेवर प्रबंधन अपनाने की अपील की है।  इसी क्रम में वहीं अमर उजाला से विशेष बातचीत में स्वदेशी जागरण मंच के राष्ट्रीय सह-संयोजक डॉ. अश्वनी महाजन ने भी सरकार के इस निर्णय का विरोध किया है। 

ऑल इंडिया बैंक इम्पलाइज एसोसिएशन के अश्विनी राणा कहते हैं कि यह अजीब मजाक चल रहा है। एक सरकार महिला बैंक खोलने की पहल करती है, दूसरी सरकार उसे बंद करा देती है। केन्द्र सरकार को बताना चाहिए कि जब सार्वजनिक बैंकों का निजीकरण होगा तो बैंकों की सामाजिक जिम्मेदारी को कौन निभाएगा? राणा स्वदेशी जागरण मंच के अश्वनी महाजन की राय से इत्तेफाक रखते हैं। वह साफ कहते हैं कि अब सरकार सहकारी बैंकों (कोऑपरेटिव) के डूबने के मामले सामने आने पर उन्हें रिजर्व बैंक के दायरे में ला रही है। रिजर्व बैंक को भी बताना चाहिए कि वह अब तक क्यों सो रहा था? जब बैंक अपनी तमाम शाखाएं खोल रहे थे, तो रिजर्व बैंक की चेतना कहां थी? अश्विनी राणा का कहना है कि सरकार को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए।

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