योजना की खास बातें हैं कि किसान अपनी बंजर या खेती के लायक नहीं बची जमीन पर 500 किलो वाट से 2 मेगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र लगा सकते हैं, इससे उत्पादित ऊर्जा को ग्रिड में बेंचकर पैसा कमा सकते हैं, किसान डीजल और बिजली से चलने वाले पंपों को सोलर पावर वाले पंपों में बदल सकते हैं। - शिवनंदन लाल
सिंचाई की कमी, भूमि क्षरण, जलवायु परिवर्तन, आधुनिक तकनीक का अभाव और कमजोर वित्तीय स्थिति के बीच खेतों में अपना जांगर तोड़ मेहनतकर देश के लोगों का पेट भरने वाले कृषि प्रधान भारत देश के किसानों को अगर समय पर बिजली नहीं मिलती है तो उन्हें कई अन्य तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसका असर फसलों के उत्पादन पर भी नजर आता है। ऐसे में किसानों की इस समस्या से निपटने के लिए सरकार की ओर से कई तरह के प्रयास किए जा रहे है। देश के किसानों को खेती के लिए किसी नए कर्ज के बोझ तले दबना ना पड़े इसके लिए कई तरह की कल्याणकारी योजनाएं प्रारंभ की गई हैं। इस कड़ी में सरकार की ओर से पीएम कुसुम योजना शुरू की गई है। इस योजना के तहत किसानों को सोलर पंप लगाने के लिए सब्सिडी मुहैया कराई जाती है। पीएम कुसुम योजना के जरिए किस मात्रा 10 प्रतिशत पैसा देकर महंगे सोलर उपकरण लगवा सकते हैं और मुफ्त की बिजली पा सकते हैं। किसान इस योजना के तहत जहां 70 से 80 फीसदी सब्सिडी पर सोलर पंप अपने खेत में लगवा सकते हैं। वहीं इसके जरिए वे बेहतर कमाई भी कर सकते हैं।
देश के नागरिक यदि सोलर ऊर्जा से शुरू करना चाहते हैं तो फिर सरकार की पीएम कुसुम योजना के साथ जुड़ने की सोच सकते हैं। इस योजना के तहत किसानों को अपनी जमीन पर सोलर पैनल लगाने के लिए सिर्फ 10 फीसदी पैसे खर्च करना होता है। सोलर पंप के जरिए किसान अपने खेतों की सिंचाई ही नहीं कर सकते हैं। बल्कि बंजर जमीन में इसे लगाकर मोटी कमाई भी कर सकते हैं। जानकारों के मुताबिक, एक मेगावट का सोलर प्लांट लगाने के लिए करीब 4 से 5 एकड़ भूमि की जरूरत होती हैं। इससे एक साल में करीब 15 लाख बिजली यूनिट बनाई जा सकती है। इस बिजली को किसान बेच सकते हैं। जिससे किसानों की मोटी कमाई होगी।
मालूम हो कि केंद्र की एनडीए सरकार ने साल 2019 में प्रधानमंत्री कुसुम योजना की शुरुआत की थी। जिसके बाद इस योजना का विस्तार किया गया है। यह योजना ऊर्जा मंत्रालय की तरफ से चलाई जा रही है। इस योजना के तहत केंद्र सरकार की ओर से 30 फीसदी और राज्य सरकार की तरफ से 45 फीसदी सब्सिडी मुहैया कराई जाती है। कुल मिलाकर किसानों को सोलर पंप लगाने के लिए 75 फीसदी सब्सिडी मिल जाती है। किसानों को सिर्फ 25 फीसदी पैसे देने होते हैं। वहीं बैंक की ओर से लोन भी मिलता है। इस लोन को किसान अपनी होने वाली आमदनी से आसानी से चुका सकते हैं। इन पंर्पो को लगाने पर बीमा कवर भी मिलता है। इस योजना का मकसद सौर ऊर्जा से चलने वाले सोलर पंप को बढ़ावा देना है। इस योजना के तहत सरकार की ओर से अब तक साढ़े 3 करोड़ से अधिक सोलर पंप किसानों को दिए जा चुके हैं।
भारत की ऊर्जा सुरक्षा, देश की आर्थिक और पर्यावरणीय रणनीति की आधारशिला है, जिसमें नवीकरणीय ऊर्जा और आत्मनिर्भरता पर विशेष जोर दिया गया है। जनवरी 2025 तक, देश की गैर-जीवाश्म ईधन ऊर्जा क्षमता 217.62 गीगामेंट तक पहुँच गई है। सीसीडीसी पवन पहल ने पवन ऊजो विकास को काफी विस्तार दिया है, जिससे इस क्षेत्र की स्थापित क्षमता 48. 16 गीगावॉट हो गई है। 2023 में शुरू किया गया राष्ट्रीय हरित्त हाइड्रोजन मिशन, 8 लाख करोड़ रुपये से अधिक के निवेश के साथ भारत को हाइघ्ड्रोजन ऊर्जा में विश्व के अग्रणी देश के रूप में स्थापित कर रहा है। राष्ट्रीय सौर मिशन ने सौर ऊर्जा विकास को बढ़ावा दिया है, जिसकी स्थापित क्षमता 2016 के 9.01 गीगावॉट से बढ़कर 2025 में 97.86 गीगावॉट हो गई है। इसके अतिरिक्त. पीएम-कुसुम और पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना किसानों और परिवारों के बीच सौर ऊर्जा अपनाने में तेजी ला रही है। पर्याप्त सरकारी निधि और नीतिगत उपायों द्वारा समर्थित ये प्रयास, कार्बन उत्सर्जन को कम करते हुए ऊर्जा सुरक्षा प्राप्त करने की भारत की प्रतिबद्धता को उजागर करते हैं। तकनीकी प्रगति और रणनीतिक निवेश का लाभ उठाकर, भारत एक स्वच्छ, अधिक सुदृढ़ ऊर्जा भविष्य की ओर अग्रसर है।
भारत की ऊर्जा सुरक्षा, देश के आर्थिक विकास और सतत विकास लक्ष्यों का एक महत्वपूर्ण घटक है। सरकार ने नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने, ग्रिड स्थिरता को बढ़ाने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से विभिन्न योजनाओं पर तेज गति से काम कर रही हैं। राष्ट्रीय जैव ऊर्जा मिशन, राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, पीएम-कुसुम और पीएम सूर्य घर मुफ्त बिजली योजना जैसे प्रमुख कार्यक्रम स्वच्छ और आत्मनिर्भर उर्जा भविष्य के प्रति देश की प्रतिबद्धता को दर्शाते हैं। जनवरी 2025 तक, आरत की कुल गैर-जीवाश्म ईधन आधारित ऊजो क्षमता 21762 गीगावॉट तक पहुंच गई है।
जून 2020 में शुरू की गई, केंद्रीकृत डेटा संग्रह और समन्वय (सीसीडीसी) पवन पहल का उद्देश्य सटीक डेटा संग्रह और अनुसंधान के माध्यम से पवन संसाधन मूल्यांकन में सुधार करके भारत के पवन ऊर्जा विकास को आगे बढ़ाना है। यह पहल परियोजना डेवलपर्स के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करती है, जिससे उन्हें पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए सबसे उपयुक्त स्थानों की पहचान करने में मदद मिलती है। यह बड़े पैमाने की पवन ऊर्जा परियोजनाओं के कुशल कार्यान्वयन का समर्थन करता है और पवन क्षेत्र में निवेश को प्रोत्साहित करता है। सरकार ने राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान (एनआईडब्लूई) के माध्यम से पूरे देश में 800 से अधिक पवन-निगरानी स्टेशन स्थापित किए हैं और जमीनी स्तर से 50 मीटर, 80 मीटर और 100 मीटर ऊपर पवन क्षमता मानचित्र जारी किए हैं। 30 जनवरी 2024 तक, भारत की संचयी पवन ऊर्जा क्षमता 48.16 गीगावॉट है।
योजना का प्रमुख लक्ष्य केंद्रीकृत डेटा संग्रह और अनुसंधान के माध्यम से पवन ऊर्जा विकास को सुविधाजनक बनाना, बेहतर कार्यस्थल पहचान के लिए सटीक पवन संसाधन मूल्यांकन प्रदान करना, पवन ऊर्जा परियोजनाओं में निजी क्षेत्र के निवेश और सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना है।
अब तक की उपलब्धियां की बात करें तो उन्नत पवन संसाधन मानचित्रण ने देश भर में 50 से अधिक संभावित पवन ऊर्जा स्थलों की सफल पहचान में योगदान दिया है।
2020-2024 से 10 गीगावॉट से अधिक नई पवन ऊर्जा क्षमता के विकास में योगदान दिया, जिससे भारत की पवन ऊर्जा क्षमता में 30 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
पवन ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि, मार्च 2004 के 1.86 गीगावॉट और दिसंबर 2014 के 21.04 गीगावाट से बढ़कर जनवरी 2025 में 48.16 गीगावॉट, जो पहल के प्रभाव को दर्शाती है।
2024 में, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने भारत की पहली अपतटीय पवन उर्जा परियोजनाओं की स्थापना के लिए 7,453 करोड़ रुपये की व्यवहार्यता अंतर निधि (वीजीएफ) योजना को मजूरी दी। इस योजना में 1 गीगावॉट की अपतटीय पवन क्षमता (गुजरात और तमिलनाडु के तटों पर 500-500 मेगावाट) के लिए 6.853 करोड़ रुपये और इन परियोजनाओं के लॉजिस्टिक्स का समर्थन करने के क्रम में बंदरगाह उन्नयन के लिए 600 करोड़ रुपये शामिल हैं।
पीएम कुसुम योजना का मुख्य उद्देश्य किसानों को सौर ऊर्जा से चलने वाले सिंचाई पंप मुहैया कराना ताकि उनकी कृषि उत्पादन लागत कम हो, डीजल पंप की जगह सौर ऊर्जा से चलने वाले पंप इस योजना के तहत दिए जाते हैं, अगर किसान अतिरिक्त बिजली का उत्पादन करते हैं तो वह उसे बेचकर पैसा भी कमा सकते हैं तथा स्वच्छ ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा देकर कार्बन उत्सर्जन को कम करना है।
योजना की खास बातें हैं कि किसान अपनी बंजर या खेती के लायक नहीं बची जमीन पर 500 किलो वाट से 2 मेगावाट क्षमता के सौर ऊर्जा संयंत्र लगा सकते हैं, इससे उत्पादित ऊर्जा को ग्रिड में बेंचकर पैसा कमा सकते हैं, किसान डीजल और बिजली से चलने वाले पंपों को सोलर पावर वाले पंपों में बदल सकते हैं।
अधिकांश मामलों में सरकार पीएम कुसुम योजना के तहत 60 प्रतिशत सब्सिडी देती है जबकि 30 प्रतिशत बैंक से ऋण लिया जा सकता है किस को सिर्फ 10 प्रतिशत ही अपनी तरफ से देना होता है। मान लीजिए कि अगर 50000 का पंप है तो 5000 का इंतजाम कर किसान इसका लाभ उठा सकता है। अमूमन सोलर पैनल 25 साल तक चलते हैं इससे लंबे समय तक किसानों को लाभ मिलता है।