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कहानी भारतीय समोसे और जलेबी की

हाल ही में भारत का समोसा और जलेबी, जो लगभग पूरे देश में सर्वसुलभ हैं और पसंद किए जाते हैं, सोशल मीडिया में खासी चर्चा में रहे। इसका कारण था, भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय के सचिव पुण्य सलिला श्रीवास्तव का वह पत्र, जिसमें उन्होंने एडवाईजरी जारी की थी, जिसमें उन्होंने सभी मंत्रालयों एवं विभागों को अनुरोध किया था कि वे सार्वजनिक स्थानों जैसे कैफेटेरिया (कैंटीन) और लॉबी में ‘आयल और शुगर बोर्ड’ लगाएं, जिसमें समोसे, जलेबी, बड़ा पाव, कचोरी छिपी हुई वसा और चीनी को उजागर करें। उसके बाद सोशल मीडिया में इसकी भारी आलोचना शुरू हो गई। सोशल मीडिया में भारतीय समोसे का महिमा मंडन उससे पहले कभी इस प्रकार से नहीं हुआ होगा, जितना उसके बाद हुआ। हालांकि मंत्रालय ने बाद में स्पष्टीकरण करते हुए कहा कि यह निर्देश किसी खास वस्तु पर केंद्रित नहीं था। समझ सकते हैं कि फास्ट फूड में एक समस्या होती है कि लोगों को लुभाने के लिए निर्माता उसमें आवश्यकता से अधिक नमक, चीनी और फैट डाल देते हैं। इन तत्वों की अधिकता के कारण तरह-तरह की असंक्रमणकारी बीमारियां, यानी नॉन कम्यूनिकेबल डिजीस होती हैं। हृदय रोग उच्च रक्तचाप, डायबिटीज समेत एडी कई बीमारियां, लोगों के स्वास्थ्य पर ही नहीं, आर्थिक स्थिति पर भी भारी प्रतिकूल असर डालती हैं। स्वास्थ्य सचिव की एडवाईजरी में फास्ट फूड का जिक्र करते हुए, समोसे जलेबी का पहला उदाहरण देना कुछ अटपटा है। वास्तव में असंक्रमणकारी रोगों (एनसीडी) के कारण के नाते जिन फास्ट फूड और पैकेज्ड फूड का अक्सर जिक्र आता है, उनमें पिज्जा, बर्गर, चाईनीज, नूडल, पेय, पोटेटो चिप्स आदि तो उसमें अक्सर शामिल किये जाते हैं , लेकिन भारत के समोसे और जलेबी का कभी भी जिक्र नहीं होता।। देखा गया है कि इन फास्ट फूड में अत्यधिक मात्रा में नमक, चीनी और वसा का इस्तेमाल किया जाता है, ताकि इन चीजों की लत लोगों में ख़ास तौर पर बच्चों में लग जाये। स्वास्थ्य विषेषज्ञों द्वारा अक्सर इसके बारे में चिंता भी व्यक्त की जाती रही है। समझना होगा कि परम्परागत रूप से सड़क पर चलने वाले आम आदमी से लेकर बड़े से बड़े उद्योगपति, अफसर और नेता समोसे और जलेबी का लुत्फ उठाते देखे जा सकते हैं। देश में हर जेब के लिए समोसा उपलब्ध है। दो रूपये से लेकर 200 रूपये तक आप समोसा खरीद सकते हैं। जलेबी का तो यह आलम है कि देश में हर खुशी का इजहार जलेबी से होता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार वास्तव में विशेषज्ञों की तमाम सिफ़ारिशों के बावजूद स्वास्थ्य के लिए हानिकारक जरूरत से कही अधिक वसा, नमक और चीनी से युक्त उत्पादों के बारे में वार्निंग सिगनल देने वाले निर्देष देने वाला आदेश अभी तक जारी नहीं कर पायी है। गौरतलब है कि बड़ी-बड़ी कंपनियों द्वारा बनाये जा रहे पैकेज्ड़ फूड में इन प्रकार के उत्पादों की भरमार है, जिसके कारण बड़ी-बड़ी एनसीडी हो रही हैं, जिस पर सरकार का ही नहीं बल्कि आम समाज का भी भारी खर्च हो रहा है। और लाखों लोगों की मौत का वह कारण बन रही है।

गौरतलब है कि भारत के खाद्य नियामक संस्थान एफएसएसएआई ने दो वर्ष पूर्व एक प्रस्ताव रखा था कि देश के पैकेज्ड फूड को स्टार रेटिंग की प्रक्रिया शुरू की जाए। जिसमें एक स्टार से लेकर पांच स्टार तक रेटिंग करने का प्रावधान रखने का प्रस्ताव था। एक स्टार यानि स्वास्थ्य के लिए कम हानिकारक और पांच स्टार का मतलब स्वास्थ्य के लिए सर्वाधिक उपयुक्त। मजेदार बात यह थी कि इसमें किसी भी उत्पाद पर कोई चेतावनी देने का प्रावधान नहीं बताया गया था। ऐसे में विशेषज्ञों द्वारा इस प्रस्ताव पर यह कहकर आपत्ति दर्ज कराई गई कि स्टार रेटिंग के माध्यम से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक उत्पादों को भी स्टार रेटिंग दी जाएगी और उपभोक्ता को यह जानकारी नहीं होगी कि वे खाद्य पदार्थ स्वास्थ्य के लिए कितने हानिकारक हैं। विशेषज्ञों ने यह कहा कि अधिकांश पैकेज्ड खाद्य पदार्थों में अत्यधिक वसा, नमक और चीनी होती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन खाद्य पदार्थों के निर्माता इन हानिकारक इंग्रीडिएंट को इसलिए डालते हैं ताकि उपभोक्ताओं को इसकी लत पड़ जाए। विशेषज्ञों ने यह मांग की कि स्टार रेटिंग की प्रक्रिया को रोक कर वार्निंग सिंग्नल देने का प्रावधान रखा जाए। यानि उपभोक्ताओं को यह जानकारी हो कि वे उत्पाद अधिक वसा, नमक और चीनी के कारण हानिकारक हो सकते हैं। हालाँकि स्वास्थ्य मंत्रालय के हस्तक्षेप से स्टार रेटिंग के प्रस्ताव को ठंडे बस्ते में डाला गया और उसके स्थान पर यह प्रस्ताव लाया गया कि इन हानिकारक अवयवों को पैकेज्ड पैकेट पर बड़े शब्दों में लिखा जाए। ऐसे में पैकेज्ड फूड के बारे में अब लोगों को अब कम से कम यह जानकारी मिलने लगी है कि उनमें कितने हानिकारक पदार्थ हैं। समझना होगा कि पूरी दुनिया में न्यूज़ीलैंड और आस्ट्रेलिया को छोड़ किसी भी देश में स्टार रेटिंग का प्रावधान नहीं है; शेष दुनिया में यहाँ जहाँ पैकेज्ड फ़ूड पर लेबलिंग का प्रावधान है, वहाँ वार्निंग सिग्नल ज़रूर दिए जा रहे हैं। लेकिन अब स्वास्थ्य मंत्रालय के इस पत्र और एडवाइजरी के बाद एक नई बहस छिड़ी है कि क्या हमारे सरकारी विभाग इस बात से अंजान हैं कि भारत के पुराने और ताजे स्नैक्स, पैकेज्ड फूड के मुकाबले कहीं ज्यादा स्वास्थ्यकारी हैं। यदि स्वास्थ्य मंत्रालय को तेल की गुणवत्ता के बारे में बात करनी हो तो उस प्रकार की एडवाइजरी जारी करनी चाहिए थी, न कि समोसे और जलेबी को चिन्हित करते हुए सार्वजनिक स्थलों पर उसके बारे में चेतावनी देने की। यहां प्रश्न यह है कि अत्यधिक वसा, नमक और चीनी वाले पैकेज्ड फूड जो निश्चित रूप से स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं, उनपर स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत आने वाला एफएसएसएआई अभी तक चेतावनी जारी करने का फैसला नहीं ले पाया है। हानिकारक पैकेज्ड फ़ूड को बचा कर, देसी समोसे और जलेबी पर गाज क्यों?

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