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सुधार से आसान होती विकसित अर्थव्यवस्था की राह

केंद्र और राज्यों को मिलकर ऐसी नीति बनानी होगी जहां एमएसएमई को सस्ता ऋण आसान, बाजार पहुंच और कौशल विकास की वास्तविक सुविधा मिले तभी जीएसटी सुधार भारत को कराधान की जटिलताओं से मुक्त कर आत्मनिर्भर, प्रतिस्पर्धी, अर्थव्यवस्था के साथ-साथ 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा। - अनिल तिवारी

 

आजकल सोशल मीडिया पर एक मीम बहुत तेजी से वायरल हो रहा है जिसमें नई गाड़ी और नए घर वाले सुनील बाबू जीएसटी की कटौती दर को लेकर खासे पेशोपेश में है। वह बहुत-बहुत खुश है तो कुछ-कुछ उदास भी हैं। उन्होंने वस्तु एवं सेवा कर कम होने के कारण आवश्यक उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत घट जाने से बचत के बढ़ने की उम्मीद पाल रखी है लेकिन उनकी श्रीमती जी ने घटे हुए दामों का हवाला देकर खरीदारी की फेहरिश्त पहले की तुलना में और लंबी कर दी है। मीम में सुनील बाबू खर्च और बचत का तुलनात्मक हिसाब किताब लगाते हुए दिखते हैं। विज्ञापन में सुनील बाबू अपने मासिक आय-व्यय को लेकर भले थोड़ी देर के लिए ठहर गए हैं लेकिन जीएसटी कर सुधार की घोषणा के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था की रफ्तार तेज होना लाजमी है। त्यौहारी सीजन के दौरान बाजार के खिलखिलाने की आहट अभी से आने लगी है।

जीएसटी सुधार केवल कर संग्रहण की प्रक्रिया नहीं है बल्कि आर्थिक ढांचे को दीर्घकालिक मजबूती देने वाली रणनीति है। मसाला कराधान को जटिलता या पारदर्शिता भर का नहीं, बल्कि इस बात से जुड़ा है कि भारत सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योगों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा में किस तरह स्थापित करता है यहीं से यह सुधार एक कर नीति से आगे बढ़कर विकास का रूप लेता हैं। नए सुधारां का लक्ष्य कर आधार को विस्तारित करना, दरों को सरल बनाना और रिसाव को रोकना है। किंतु जब तक इन प्रावधानों को व्यावहारिक स्तर पर लागू नहीं किया जाएगा परिणाम सीमित ही रहेंगे, कर भुगतान की पूरी डिजिटल व्यवस्था छोटे उद्योगों को प्रशिक्षण और तकनीकी सहयोगी इन सुधारो की सफलता तय करेंगे।

अति आवश्यक वस्तुओं पर जीएसटी की दर घटाकर पांच प्रतिशत कर दिया जाना और कई जीवन रक्षक दवाइयों पर कर दर शून्य प्रतिशत होना केवल कर सुधार नहीं बल्कि राष्ट्र निर्माण को और अधिक गति देने का परिचायक है। जिस तरह भारतीय बाजार में मांग बढ़ रही है, उससे लगने लगा है कि यह न सिर्फ समर्थ भारत के सपनों को पंख लगाने वाला निर्णय है बल्कि दुनिया के नक्शे पर भारत की सकारात्मक को प्रदर्शित करने वाली पहल है।

जीएसटी की नई दरें लागू हो चुकी है। लगभग 400 आइटम पर टैक्स कम हो गया है। सरकार ने जीएसटी में पांच प्रतिशत और 18 प्रतिशत के अलावा बाकी सभी स्लैब को खत्म कर दिया है। केंद्र की मोदी सरकार ने पुराने जटिल कर ढांचे को सरल बनाते हुए नागरिकों के अनुकूल दो स्लैब संरचना में चीजों को समाहित कर दिया है। इसके तहत आवश्यक वस्तुओं पर पांच प्रतिशत और सामान्य वस्तुओं और सेवाओं पर 18 प्रतिशत का कर निर्धारण किया गया है, वही विलासिता एवं हानिकारक वस्तुओं पर 40 प्रतिशत तक का टैक्स लगाया गया है। वर्ष 2017 में देश में लागू किए गए वस्तु एवं सेवा कर का उद्देश्य देश की कर प्रणाली में बदलाव लाना था, जिसके तहत करां के जटिल जाल को एकीकृत कर प्रणाली से बदला गया। हालांकि इसके प्रभाव को दोधारी तलवार की संज्ञा देते हुए पक्ष और विपक्ष द्वारा इसके फायदे और नुकसान गिनाए जाते रहे। इस बीच 3 सितंबर 2025 को 56 वीं जीएसटी परिषद की बैठक में कर सुधारों की घोषणा हुई, जो कि गत 22 सितंबर से पूरे देश में लागू है। प्राथमिक रुझानों को देखते हुए कहा जा सकता है कि यह न सिर्फ सरकार का एक साहसिक ऐतिहासिक और दूरदर्शी कदम है बल्कि भारत की आर्थिक क्रांति को मजबूती देते हुए एक बड़ी अर्थव्यवस्था का लक्ष्य हासिल करने का जरिया भी है।

लागू टैक्स स्लैब से दैनिक आवश्यक वस्तुएं जैसे दूध चावल आटा चाय दही किताब रोटी अब या तो कर मुक्त है या उस पर सिर्फ पांच प्रतिशत कर लग रहा है। यह केंद्र की सरकार की गरीब और मध्यम वर्ग के प्रति गहरी प्रतिबद्धता को दर्शाता है ताकि कोई भी भारतीय परिवार अपनी रोजमर्रा की जरूरत से अत्यधिक बोझिल ना हो। यह सरकार के ‘सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास’ की प्रतिबद्धता का भी परिचायक है।

इस कड़ी में स्वास्थ्य सेवाओं को भी प्राथमिकता दी गई है। सभी तरह की स्वास्थ्य सेवाएं और जीवन बीमा पॉलिसीयां कर मुक्त कर दी गई है, वही जीवन रक्षक दवाओं पर भी जीएसटी घटाकर शून्य कर दिया गया है। सरकार ने आम आदमी के दुख दर्द के प्रति अपनी संवेदना दिखाई है तथा संकट की घड़ी में गरिमा और राहत के लिए हर संभव मदद का संदेश दिया है। इसी तरह कृषि प्रधान भारत देश की रीढ़ समझे जाने वाले किसानों के लिए भी ट्रैक्टर सिंचाई प्रणाली खाद और कीटनाशकों पर जीएसटी घटकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। इससे खेती की लागत घटेगी और ग्रामीण समृद्धि में वृद्धि होगी। महिलाओं, युवाओं और छोटे तथा मझौले उद्यम के लिए भी राहत की घोषणा की गई है। मौजूदा सुधार से कपड़ा और उर्वरक उद्योग जो लंबे समय से उल्टे कर ढांचे से जूझ रहे थे को लाभ मिलेगा। वहीं सरकार की इस पहल से मध्यम वर्ग का भी सशक्तिकरण होगा।

महत्वपूर्ण बात यह है कि सरकार ने जीएसटी अपील न्यायाधिकरण शुरू करने की घोषणा की है जो कि दिसंबर 2025 तक अपना काम शुरू कर देगी इसके लिए सरकार के स्तर पर यह सुनिश्चित किया जा रहा है की बरसों से आ रही परेशानियों को दूर करते हुए व्यवसाय में पारदर्शिता तथा न्याय के साथ शीघ्र समाधान का रास्ता तैयार किया जा सके। ‘नारी शक्ति भारत की प्रगति की चालक है’ जैसी सोच के साथ महिला उद्यमियों के सशक्तिकरण के लिए सरल जीएसटी और आसान क्रेडिट पहुंच से महिला नेतृत्व वाले एमएसएमई को विस्तार रोजगार और नवाचार के नए-नए अवसर उपलब्ध कराने के भी संकेत प्राप्त हुए हैं।

सरकार ने नवरात्रि से दीपावली तक जीएसटी सुधारों तथा इससे होने वाले लाभों को समझने के लिए सांसदों को अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र में व्यापारियों के साथ संवाद करने का भी खाका तैयार किया है। ऐसी बैठकों में रजक सांसदों से भारत में बने उत्पादों को बढ़ावा देने तथा जीएसटी दरों में कटौती किए जाने के बाद व्यापारिक गतिविधियों को रफ्तार देने के लिए भी रणनीति बनाने की बात कही गई है। जीएसटी 2.0 पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए देश के प्रधानमंत्री ने हाल ही में कहा कि ’यह राष्ट्र के लिए समर्थन और वृद्धि की दोहरी खुराक है, जो 21वीं सदी के भारत की प्रगति को ध्यान में रखकर अगली पीढ़ी के लिए सुधारात्मक उपाय की तरह प्रस्तुत है’।

मालूम हो कि जीएसटी में व्यापक सुधार रातों-रात नहीं हुआ बल्कि इसकी शुरुआत माल एवं सेवा कर परिषद की पिछले साल दिसंबर में जैसलमेर में हुई बैठक से पहले ही हो गई थी। इसके लिए एक मंत्री समूह पिछले डेढ़ साल से कम कर रहा था। बैठकों में इस बात की गहन समीक्षा की गई की न केवल कर स्लैब कम किए जाएं बल्कि लघु और मझौले व्यवसाय के लिए यह कैसे अति उत्तम हो सकता है उस पर गहनता से काम किया गया।

दशकों तक भारतीय आर्थिक विकास की गति सुस्त रही। 1991 के आर्थिक सुधारों के बाद विकास ने गति पकड़ी। बाद में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नेतृत्व वाले उदारीकरण ने इस गति को और बढ़ाया। बीच में राजनीतिक अस्थिरता के बावजूद, राष्ट्र ने 1991 के बाद, पिछले पांच दशकों की तुलना में दोगुनी दर से वृद्धि की। ये सुधार मुख्य रूप से व्यापार और बाहरी क्षेत्र पर केंद्रित थे। इससे घरेलू मैन्युफैक्चरिंग के लिए वैश्विक प्रतिस्पर्धा तो बढ़ी लेकिन आंतरिक सुधारों के आभाव के कारण औद्योगिक विस्तार रूका और केवल सर्विस सेक्टर बढ़ा। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में मैन्यूफैक्चरिंग का योगदान लगातार 15-16 प्रतिशत के आसपास ही बना रहा है जबकि सर्विसेज सेक्टर 38 प्रतिशत से 55 प्रतिशत तक पहुंच गया। पर्याप्त संख्या में अच्छी तनख्वाह वाली मैन्यूफैक्चरिंग में नौकरियों की कमी तब से एक स्थायी चुनौती रही है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों का अनुभव भी इन दावों की पुष्टि करता है। भारत के विनिर्माण पारिस्थितिकी तंत्र में अंतर्निहित बाधाएं उद्यमियों को उनकी पूरी क्षमता का उपयोग करने से रोकती हैं। 6.4 करोड़ उद्यमों में 99 प्रतिशत सूक्ष्म बने रहते हैं और बमुश्किल एक प्रतिशत छोटे हैं जबकि मध्यम उद्यमों का आकार इतना छोटा है कि यह 0.5 प्रतिशत से कम है। 140 करोड़ के राष्ट्र में 30 लाख से अधिक औद्योगिक बिजली कनेक्शन नहीं हैं और 10 से अधिक लोगों को रोजगार देने वाली फैक्ट्रियों की संख्या बमुश्किल 2.5 लाख है। इसका नतीजा बहुत छोटे पैमाने के उद्योग, अनौपचारिक रोजगार और वैश्विक प्रतिस्पर्धा का सामना करने में असमर्थता के रूप में हमारे सामने है।

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों की दृष्टि में मजबूत और टिकाऊ औद्योगिक विकास प्राप्त करने के लिए संरचनात्मक सुधारों की एक नई लहर शुरू करने की आवश्यकता है। इसके लिए जरूरी है कि कर सुधार के साथ-साथ आर्थिक विकास को मूल में रख कर, शहरों की प्रशासनिक व्यवस्था, विकास और मास्टर प्लान डिजाइन पर पुनर्विचार किया जाए। 

एमएसएमई महत्वपूर्ण उत्पाद श्रेणियों/उप-क्षेत्रों में तकनीकी कमियों की पहचान करने और इस कमी को स्वदेशी अनुसंधान एवं विकास संस्थानों के माध्यम से या विशेष रूप से पूर्वी और दक्षिण पूर्व एशिया की उन्नत अर्थव्यवस्थाओं के साथ संयुक्त उद्यमों को प्रोत्साहित करके पूरा करने के लिए एक प्रौद्योगिकी मिशन की आवश्यकता है। यह मिशन चरणबद्ध तरीके से अध्ययन कर सकता है कि सबसे अधिक संकटग्रस्त उत्पादों को कैसे प्राथमिकता दी जा सकती है?

कुल मिलाकर समाधान यही है कि सुधार को केवल राहत-सुधार की दृष्टि से ना देखा जाए बल्कि उसे रोजगार, उद्यमिता और नवाचार का आधार बनाया जाए। केंद्र और राज्यों को मिलकर ऐसी नीति बनानी होगी जहां एमएसएमई को सस्ता ऋण आसान, बाजार पहुंच और कौशल विकास की वास्तविक सुविधा मिले तभी जीएसटी सुधार भारत को कराधान की जटिलताओं से मुक्त कर आत्मनिर्भर, प्रतिस्पर्धी, अर्थव्यवस्था के साथ-साथ 2047 तक विकसित भारत के लक्ष्य को प्राप्त कर सकेगा।         

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