अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जीएसटी की दरों में कमी से मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति में भी वृद्धि होगी, जिससे देश में उपभोक्ता माँग ही नहीं, बल्कि निवेश मांग भी बढ़ेगी। - डॉ. अश्वनी महाजन
2017 में प्रारंभ जीएसटी प्रणाली ने पिछले 8 वर्षों में बड़े उतार-चढ़ाव देखे हैं। लगभग एक दशक की चर्चा और डिबेट के बाद जीएसटी प्रणाली देश में लागू हुई थी। प्रारंभ से ही जीएसटी के बारे में चिंता, शंकाएं और अपेक्षाएं व्यक्त की जाती रही है। जहां प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस इसकी आलोचना करती दिखाई देती रही और उनके प्रमुख नेता इसे ‘गब्बर सिंह टैक्स’ कहते रहे, और प्रारंभ में व्यापारी संगठन इससे जुड़ी कार्यान्वयन की समस्याओं को लेकर इसका विरोध करते दिखाई देते थे; वहीं बड़ी संख्या में अर्थशास्त्री और विशेषज्ञ इसे एक बड़ा सुधार मान रहे थे।
राज्य सरकारें और केंद्र सरकार भी इस नई कर प्रणाली को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त नहीं थी। सरकार ने हालांकि जुलाई 2017 में इस प्रणाली को लागू तो कर दिया था, लेकिन प्रारंभ में इससे पर्याप्त राजस्व प्राप्त करने की प्रमुख चुनौती थी।
क्या है जीएसटी?
जीएसटी यानी ‘गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स’ एक एकीकृत अप्रत्यक्ष कर प्रणाली है। जीएसटी से पूर्व देश में केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा विभिन्न प्रकार के अप्रत्यक्ष कर लगाए जाते थे, जिसमें बिक्री कर, राज्य उत्पाद शुल्क, केंद्रीय उत्पाद शुल्क, सेवाकर, सीमा शुल्क और कई अन्य कर शामिल थे। इन सभी करों को एकीकृत कर एक ही टैक्स जीएसटी के रूप में लगाया गया। इसका हेतु यह था कि विभिन्न प्रकार के कर लगाने से कर दाताओं और कर एकत्र करते हुए उसे सरकारी राजस्व में जमा करना कठिन होता था और उसको एकत्र करने की लागत भी अधिक आती थी। इसके अलावा विभिन्न करों को लगाने से उसका अनपेक्षित प्रभाव होता था। उदाहरण के लिए अलग-अलग स्तर पर कर लगाने के कारण एक ही वस्तु पर दो और कई बार दो से ज्यादा बार टैक्स देना पड़ता था। इसके कारण सरकार को राजस्व कम प्राप्त होता लेकिन वस्तु की कीमत टैक्स प्राप्ति से कहीं ज्यादा बढ़ जाती थी। इस अनपेक्षित प्रभाव को कैसकेंडिंग प्रभाव कहते हैं।
राजस्व प्राप्ति के स्रोत के रूप में सामान्य तौर पर अप्रत्यक्ष करों को इसलिए सही नहीं माना जाता, क्योंकि इसे अमीर और गरीब सभी के द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर लगाया जाता है। इसलिए अप्रत्यक्ष करों को प्रगतिशील बनाने के लिए इसे लागू करते हुए विभिन्न वस्तुओं पर अलग-अलग कर लगाना जरूरी माना जाता है। उदाहरण के लिए जीएसटी की 0, 5, 12, 18 और 28 प्रतिषत की पांच दरें लागू की गई। कृषि उत्पादों समेत कुछ आवश्यक वस्तुओं पर शून्य और अलग-अलग वस्तुओं पर अलग-अलग कर लगाए गए, जिसमें आवश्यक वस्तुओं पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगाया गया। इसके बाद इसी निष्कर्ष के आधार पर 12, 18 और 28 प्रतिशत जीएसटी लगाया गया, जिसमें विलासिता की और हानिकारक वस्तुओं पर 28 प्रतिशत कर लगाया जाता रहा।
कर दरें ज्यादा हो या कम?
सामान्य तौर पर चाहे किसी भी प्रकार का कर हो - अप्रत्यक्ष कर अथवा प्रत्यक्ष कर, सभी में प्रगतिशीलता लाने हेतु अलग-अलग दर पर कर लगाया जाता है। उदाहरण के लिए एक स्तर की आय तक शून्य और उसके बाद आय के परिमाण के आधार पर स्लैब बनाकर उन पर बढ़ती दरों पर आयकर लगाया जाता है। इसी प्रकार अप्रत्यक्ष करों में सामान्य जन अधिकांशतः निम्न आय वर्ग द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर शून्य अथवा बहुत कम कर लगाया जाता है। इसी प्रकार जीएसटी लागू करते समय उसे अधिक प्रगतिशील बनाते हुए उसमें पांच दरें रखी गई थी। उसी समय से इस विषय में अर्थशास्त्रियों के मतभिन्नता देखने को मिलती रही। अर्थशास्त्रियों के एक वर्ग का कहना है कि इसे अधिक कुशल बनाने हेतु एक ही जीएसटी की दर होनी चाहिए। इस प्रकार की व्यवस्था सिंगापुर समेत कई देशों में है। लेकिन वे सभी विकसित देश हैं।
भारत जैसे देश में जहां असमानताएं अधिक विषम है एक ही जीएसटी की दर अपनाना सही नहीं माना जा सकता क्योंकि एक ओर रोजमर्रा की जरूरत की वस्तुओं जैसे दूध दही पनीर पैकेज खाद्य पदार्थ साइकिल और दूसरी तरफ़ महंगी कारों पर एक ही जीएसटी की दर को सही नहीं माना जा सकता। इसी कारण जीएसटी को प्रगतिशील बनाने हेतु शून्य सहित पांच दरें रखी गई थी। लेकिन एक विचार जो बार-बार व्यक्त किया जाता रहा कि अधिक दरें होने के कारण असमंजस अधिक होता है, विशेष तौर पर अंतिम वस्तु और अंतिम वस्तुओं की दरें भिन्न होने पर यह असमंजस और भी अधिक बढ़ जाता है। इसीलिए यह माना गया कि अधिक दरें जीएसटी प्रशासन में एक कुशलता का कारण बनती है। लेकिन जीएसटी में प्रगतिशीलता बनी रहे इसके लिए उसमें शून्य के अतिरिक्त न्यूनतम दो तरह की दरें सही है। ऐसा लगता है कि इसी सिद्धांत पर आधारित 5 प्रतिशत और 18 प्रतिशत की दो दरें रखने का निर्णय हुआ है।
इसके साथ ही साथ यदि सामान्य रूप से विलासिता की वस्तुएं जैसे अत्यधिक महंगी कारें, स्वास्थ्य के लिए हानिकारक वस्तुएं जैसे कार्बोरेटेड पेय पदार्थ, सिगरेट, गुटका आदि उत्पादों पर विशेष दर पर जीएसटी लगाया गया है। अनेक उत्पाद जिन पर पांच प्रतिशत की दर से जीएसटी लगता था, उन्हें अब शून्य की श्रेणी में लाया गया है। इनमें अधिकांश दुग्ध उत्पादों सहित खाद्य पदार्थ हैं। इसके अतिरिक्त कई उत्पाद जिन पर पूर्व में 12 और 18 प्रतिशत की दर से जीएसटी लगता था अब 5 प्रतिशत की श्रेणी में आ गए हैं। ऐसे उत्पाद जिन पर पूर्व में 28 प्रतिशत की दर से जीएसटी लगता था अब 18 प्रतिशत की श्रेणी में शामिल हो गए हैं। कहा जा सकता है कि जीएसटी की दरों में भारी कमी हुई है। इसी प्रकार जीएसटी की दरों को युक्ति संगत बनाने का भरपूर प्रयास हुआ है।
जीएसटी सुधारो में गिरावट के पीछे की दृष्टि
हालांकि जीएसटी सुधारो से महंगाई में कमी आएगी और इसलिए यह एक लोकप्रिय कदम तो है ही जीएसटी की दरों में कमी और उन्हें युक्ति संगत बनाने के पीछे के उद्देश्यों को समझने की आवश्यकता है।
सर्वप्रथम जीएसटी के दरों में गिरावट ऐसे समय पर आई है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत के अधिकांश उत्पादों पर 50 प्रतिशत आयात शुल्क लागू कर दिया गया है। प्रधानमंत्री के 15 अगस्त के अवसर पर लाल किले की प्राचीर से दिया गया भाषण और उसमें स्वदेशी के आग्रह को भी उसके साथ जोड़कर देखा जा सकता है। जीएसटी दरों में कमी से देश में बने उत्पाद अब पहले से सस्ते हो जाएंगे, जिससे स्वदेशी उत्पादों का उपभोग तो बढ़ेगा ही साथ ही साथ हमारे उत्पाद अधिक प्रतिस्पर्धी हो जाएंगे।
दूसरे जीएसटी दरों में कमी से सामान्य उपभोग की वस्तुएं पहले से सस्ती होगी इससे मुद्रास्फीति में कमी होगी। मुद्रास्फीति में कमी का सकारात्मक प्रभाव आर्थिक ग्रोथ पर पड़ता है। मुद्रास्फीति में कमी से ब्याज दरों में कमी आती है जिससे निवेश बढ़ता है। इससे हाउसिंग क्षेत्र और स्थाई वस्तुओं का उपभोग बढ़ाने में मदद मिलती है।
तीसरी जीएसटी दरों में कमी से नवीनीकरण ऊर्जा क्षेत्र को राहत और प्रोत्साहन देने का प्रयास हुआ है। सोलर और पवन ऊर्जा उपकरणों पर जीएसटी को 12 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत कर दिया गया है। अपेक्षा की जा सकती है कि अब नवीनीकरण ऊर्जा संयंत्रों की स्थापना को प्रोत्साहन तो मिलेगा ही, नवीनीकरण ऊर्जा की लागत भी घटेगी, जिससे अब भारत इस क्षेत्र में अधिक आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर होगा।
चौथे कृषि उपकरणों और इनपुट पर जीएसटी में कमी से कृषि की लागत कम होगी। लागत घटने से किसानों की हालत में सुधार तो होगा ही हमारे कृषि उत्पादन वैश्विक दृष्टि से अधिक प्रतिस्पर्धी होंगे।
पांचवें, अर्थशास्त्रियों का मानना है कि जीएसटी की दरों में कमी से मध्यम वर्ग की क्रयशक्ति में भी वृद्धि होगी, जिससे देश में उपभोक्ता माँग ही नहीं, बल्कि निवेश माँग भी बढ़ेगी।ु