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स्वदेशी स्वावलंबन ने निकाल दी ट्रंप के शुल्क डिप्लोमेसी की हवा

घरेलू वृद्धि को सहारा देने के लिए अब नीतिगत समर्थन बढ़ाना जरूरी होगा। घरेलू खपत बढ़ाने के लिए स्वदेशी अपनाने और स्वदेशी उद्योग-कारोबार को हरसंभव तरीके से प्रोत्साहित करना जरूरी होगा। - अनिल तिवारी

 

वित्तीय वर्ष 2025-26 के पहली तिमाही के दौरान भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि दर 7.8 प्रतिशत रही है। यह सुखद परिणाम ऐसे में आया है जब दुनिया भर के देशों में टैरिफ टेरर फैला रहे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारतीय आर्थिकी को पानी पी-पीकर ’मृत अर्थव्यवस्था’ की संज्ञा देते फिर रहे हैं। लेकिन भारत ने विश्व के पैमाने पर चल रही उथल-पुथल के बीच अपने स्वदेशी स्वावलंबन और आत्मनिर्भर भारत अभियान के जरिए तमाम विरोधी एजेंसियों के पूर्वानुमानों को धत्ता बताते हुए यह साबित कर दिया है कि भारतीय आर्थिकी की जड़ें किसी सिरफिरे के फूंक मारने से खत्म होने वाली नहीं है बल्कि इसकी जड़े काफी मजबूत है।

मालूम हो कि अमेरिका लंबे समय से अपनी शर्तों पर भारत के साथ व्यापार समझौता के लिए ताने-बाने बुनता रहा है। ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में अमेरिकी प्रशासन को समझौते को अंतिम परिणति तक ले जाने की उम्मीद थी, लेकिन भारत देश हित खासकर किसानों और मछुआरों के हितों से समझौता नहीं करने की नीति पर अडिग है। अमेरिका ने भारत पर 25 प्रतिशत व्यापार शुल्क लगाया था। उसे उम्मीद थी की टैरिफ के डर से भारत झुक कर समझौता करने के लिए राजी हो जाएगा, लेकिन भारत राष्ट्रीय हितों को आगे कर तनकर खड़ा रहा। फिर क्या था बौखलाए अमेरिकी राष्ट्रपति ने रूस से तेल खरीद का ठीकरा फोड़ते हुए अतिरिक्त 25 प्रतिशत का शुल्क थोप दिया। अब कुल शुल्क 50 प्रतिशत हो गया है। इसे भारत पर दबाव बढ़ाने की रणनीति माना जा रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि बढ़े शुल्क के कारण भारत का निर्यात कारोबार प्रभावित हो सकता है। आर्थिक विशेषज्ञों द्वारा हानि लाभ का गुणा-भाग के बीच केंद्र की सरकार ने शुल्क की चुनौती से निपटने के लिए सुनियोजित कदम उठाने शुरू कर दिए। निर्यातकों को वृद्धि प्रोत्साहन देने, प्रतिस्पर्धी क्षमता मजबूत करने और घरेलू खपत बढ़ने के उपाय के साथ-साथ व्यापार के वैकल्पिक विदेशी बाजारों की तलाश शुरू कर दी है। अभी-अभी जापान के साथ हुए हालिया व्यापार समझौते को इसी कड़ी का हिस्सा माना जा रहा है। अमेरिका की शुल्क नीति का शिकार जापान भी है इसलिए वह भी भारत की ओर उम्मीद भरी नजरों से देख रहा था। जापान ने भारत में अगले एक दशक में 60000 करोड़ के निवेश का लक्ष्य रखा है। भारत ने दुनिया के 40 देशों के साथ व्यापारिक संवाद का अभियान शुरू कर अमेरिका को यह संकेत दे दिया है कि भारत राष्ट्रहित से कोई समझौता नहीं करेगा।

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए पचास फीसद शुल्क से भारत के चमड़ा, कपड़ा, रत्न, मशीनरी, आभूषण, प्रमुख रूप से प्रभाव पड़ने की आशंका जानकारों ने व्यक्त की है। लेकिन लगे हाथों अधिकांश आर्थिक विशेषज्ञ भारत की अर्थव्यवस्था को दुनिया भर में एक तेजी से बढ़ती हुई अर्थव्यवस्था के रूप में चिन्हित कर रहे हैं। अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव विषय पर प्रकाशित वैश्विक रपटों में कहा जा रहा है कि भारत की घरेलू खपत मजबूत है। ऐसे में भारत की विकास दर में किसी चिंताजनक गिरावट की आशंका नहीं है। हाल ही में  वैश्विक रेटिंग एजंसी ’एसएंडपी’ ने कहा कि अमेरिका द्वारा भारत पर पचास फीसद ऊंचे शुल्क लगाने से उसकी आर्थिक तरक्की पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा। भारत की अर्थव्यवस्था में बढ़ने की प्रवृत्ति बनी रहेगी। भारत की ’सावरेन रेटिंग’ का नजरिया आगे भी सकारात्मक बना रहेगा। चूंकि भारत एक निर्यात-उन्मुख अर्थव्यवस्था नहीं है, ऐसे में उसे फिलहाल शुल्क संबंधी चिंता करने की जरूरत नहीं है। ’एसएंडपी’ का मानना है कि भारत की विकास दर चालू वित्त वर्ष 2025-26 में 6.5 फीसद के ऊपर ही रहेगी। इसी तरह सात अगस्त को ’मार्गन स्टेनली रिसर्च’ के एक विश्लेषण में भी भारत की घरेलू मांग मजबूत होने की बात कही गई है।

इस समय भारत की विकास दर को मजबूत आंतरिक घरेलू आधार मिला हुआ है। अब इसे लगातार आगे बढ़ाया जाना जरूरी है। हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने चालू वित्त वर्ष 2025-26 के लिए भारत की विकास दर 6.4 फीसद रहने का अनुमान लगाया है। यह भी कहा गया है कि भारत की विकास दर वैश्विक अर्थव्यवस्था की विकास दर से दोगुना को सकती है। इसी तरह रेटिंग एजंसी ’क्रिसिल’ ने अपनी रपट में कहा है कि भारत में घरेलू खपत में सुधार, भरपूर खाद्यान्न उत्पादन, बेहतर मानसून, कच्चे तेल की कीमतों में नरमी, महंगाई में कमी, सस्ते कर्ज और अन्य क्षेत्रों में सकारात्मक संकेतों के कारण इस वित्तीय वर्ष 2025-26 में भारत की विकास दर 6.5 फीसद के स्तर पर होगी।

हाल ही में प्रकाशित आंकड़ों के मुताबिक खुदरा महंगाई घटने से भी घरेलू बाजार में खपत को बढ़ावा मिल रहा है। खुदरा महंगाई घट कर आठ वर्षों के निचले स्तर पर आ गई है। सस्ते कर्ज से उद्योग-कारोबार में उत्साह है। कृषि क्षेत्र में रेकार्ड उत्पादन, मानसून की अच्छी प्रगति, पर्याप्त जलाशय स्तर और मजबूत खरीफ बुवाई से सकारात्मक परिदृश्य दिखाई दे रहा है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री ने रोजगार मेले को संबोधित करते हुए कहा कि भारत के पास दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी, सबसे बड़ा लोकतंत्र, नवउद्यम, नवोन्मेष, तेजी से बढ़ता बाजार और सेवा क्षेत्र की ऊंचाइयां ऐसी शक्तियां हैं, जो दुनिया के देशों को भारत के साथ व्यापार बढ़ाने के लिए प्रेरित कर रही हैं।

खुदरा महंगाई का अनुमान आरबीआइ ने घटाया है। वित्त वर्ष 2025-26 के लिए अनुमान 3.7 फीसद से घटा कर 3.1 फीसद कर दिया है। जून 2025 में खुदरा महंगाई घट कर 2.1 फीसद पर आ गई। मई में खुदरा महंगाई दर 2.82 फीसद रही। इतना ही नहीं, जून में थोक महंगाई दर भी 20 महीने में पहली बार ऋणात्मक हुई। यह घट कर -0.13 फीसद रह गई।

भारतीय रिजर्व बैंक ने द्विमासिक मौद्रिक नीति समीक्षा पेश करते हुए रेपो रेट में 50 आधार अंकों यानी 0.50 फीसद की कटौती का एलान किया। अब रेपो रेट छह फीसद से घट कर 5.5 फीसद हो गया है। इस वर्ष 2025 में फरवरी से अब तक लगातार तीसरी बार रेपो रेट में कटौती हुई है। इसके साथ ही रिजर्व बैंक ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) में भी एक फीसद की बड़ी कटौती करते हुए इसे तीन फीसद पर ला दिया है।

निश्चित रूप से मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) भारत की वैश्विक व्यापार उपस्थिति को नया रूप देते हुए दिखाई दे रहे हैं। भारत द्वारा संयुक्त अरब अमीरात, आस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के साथ किए गए समझौते अहम हैं। भारत को संयुक्त अरब और आस्ट्रेलिया के साथ समझौते से लाभ हुआ है। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि भारत और ब्रिटेन के बीच बहुप्रतीक्षित एफटीए पर 24 जुलाई को हस्ताक्षर हुए। इस परिप्रेक्ष्य में यह भी उल्लेखनीय है कि हाल ही में दस जुलाई को भारत में स्विटजरलैंड की राजदूत माया तिस्साफी ने कहा कि भारत और चार सदस्य देशों के बीच व्यापार समझौता अक्तूबर 2025 से लागू हो जाएगा। इन सबके साथ-साथ भारत-आसियान के बीच मौजूदा व्यापार समझौते की समीक्षा के लिए चर्चा जारी है। आसियान में ब्रुनोई, कांबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमा, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं। पिछले सप्ताह भारत और जापान के बीच बड़े पैमाने पर व्यापार समझौता हुआ है।

ऐसे में महत्त्वपूर्ण है कि घरेलू वृद्धि को सहारा देने के लिए अब नीतिगत समर्थन बढ़ाना जरूरी होगा। घरेलू खपत बढ़ाने के लिए स्वदेशी अपनाने और स्वदेशी उद्योग-कारोबार को हरसंभव तरीके से प्रोत्साहित करना जरूरी होगा।   

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