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सेमीकंडक्टर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की ओर बढते कदम

भविष्य में जो देश सेमीकंडक्टर तकनीक और व्यापार पर नियंत्रण रखेगा, वही दुनिया की अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और तकनीकी नेतृत्व को निर्धारित करेगा। इसलिए यह कहना उचित होगा कि सेमीकंडक्टर का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आने वाले दशकों में निर्णायक साबित होगा।  - दुलीचंद कालीरमन

 

आज की दुनिया तकनीकी क्रांति के दौर से गुजर रही है। जिस प्रकार 19वीं और 20वीं शताब्दी में कोयला और तेल वैश्विक औद्योगिक विकास के केंद्र में थे, उसी प्रकार 21वीं शताब्दी में सेमीकंडक्टर तकनीकी प्रगति की रीढ़ बन चुके हैं। इनकी बदौलत ही आधुनिक इलेक्ट्रॉनिक्स, संचार, ऑटोमोबाइल, रक्षा, स्वास्थ्य, अंतरिक्ष और कृत्रिम बुद्धिमत्ता जैसे क्षेत्रों में क्रांतिकारी बदलाव संभव हो पा रहे हैं। यही कारण है कि सेमीकंडक्टर का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आज वैश्विक अर्थव्यवस्था और राजनीति दोनों का केंद्रीय विषय बन चुका है।

सेमीकंडक्टर हर डिजिटल डिवाइस का हृदय होते हैं। सेमीकंडक्टर चिप्स मोबाइल, लैपटॉप, ऑटोमोबाइल, रक्षा, स्वास्थ्य उपकरण, 5जी नेटवर्क, आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और अंतरिक्ष तकनीक जैसे लगभग हर क्षेत्र में अनिवार्य हैं। इसे 21वीं सदी का ‘तेल’ भी कहा जाता है, क्योंकि जिस तरह तेल ने औद्योगिक क्रांति को आगे बढ़ाया, उसी तरह सेमीकंडक्टर डिजिटल और तकनीकी क्रांति को गति दे रहे हैं।

भारत ‘मेक इन इंडिया’ के तहत अपने औद्योगिक विकास को गति देने का प्रयास कर रहा है। 2047 तक भारत को विकसित भारत का लक्ष्य प्राप्त करना है तो ऐसे में अगर सेमीकंडक्टर क्षेत्र में दुसरे देशो पर निर्भरता रही तो रणनीतिक रूप से यह सही नहीं होगा। इसी को ध्यान में रखकर और भविष्य की आवश्यकताओं की रूपरेखा के तहत भारत ने सेमीकंडक्टर निर्माण के लिए “इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन” को गति प्रदान की है। पिछले दिनों ‘सेमिकॉन इंडिया 2025’ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भारत में निर्मित ‘विक्रम’ 32-बिट लॉन्च व्हीकल ग्रेड माइक्रो प्रोसेसर भेंट किया गया, जो सेमीकंडक्टर क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। विक्रम 3201 का प्रारंभिक अंतरिक्ष परीक्षण पीएसएलवी सी-60 मिशन के साथ सफलतापूर्वक पूरा किया गया, जिससे यह सिद्ध हुआ कि यह माइक्रोप्रोसेसर भविष्य के अंतरिक्ष मिशनों के लिये विश्वसनीय है। 

विक्रम 3201 को इसरो के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र और सेमीकंडक्टर प्रयोगशाला (एससीएल), चंडीगढ़ द्वारा विकसित किया गया है। यह 16-बिट विक्रम-1601 का ही उन्नत संस्करण है, जिसका उपयोग वर्ष 2009 से इसरो प्रक्षेपण यानों में किया जा रहा था।  इसे अंतरिक्ष उड़ान अनुप्रयोगों के लिये डिज़ाइन किया गया है, जो -55 सेंटीग्रेट से 125 सेंटीग्रेट तक के चरम तापमान को सहन करने में सक्षम है जो इसरो के लॉन्च व्हीकल्स के नेविगेशन, गाइडेंस और नियंत्रण प्रणालियों में आत्मनिर्भरता सुनिश्चित करता है। 

भारत में सेमीकंडक्टर चिप निर्माण को लेकर पिछले कुछ वर्षों में बहुत तेज़ी से काम हो रहा है। इसे लेकर सरकार और निजी क्षेत्र मिलकर “इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन” चला रहे हैं। भारत का लक्ष्य ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत भारत स्वयं सेमीकंडक्टर चिप्स का निर्माण करना चाहता है। अभी तक भारत ज्यादातर चिप्स ताइवान, अमेरिका, चीन, दक्षिण कोरिया जैसे देशों से आयात करता है। भारत का चिप आयात लगभग 20-25 अरब डॉलर का है। 2021 में भारत सरकार ने रू. 76,000 करोड़ की सेमिकॉन इंडिया स्कीम शुरू की। जिसका मुख्य उदेश्य भारत में चिप फैब्रिकेशन यूनिट्स लगाना एवं चिप डिज़ाइन के क्षेत्र में स्टार्टअप्स को बढ़ावा देना है।

सेमीकंडक्टर चिप निर्माण वास्तव में बहुत जटिल तकनीकी कौशल और बड़े निवेश का विषय है। वेदांता और फोक्सकॉन मिलकर गुजरात में चिप फेब्रिकेशन यूनिट लगाने की योजना पर काम कर रहें है। इसके अलावा गुजरात के सानंद में अमेरिकी कंपनी माइक्रोन टेक्नोलॉजी अपनी यूनिट बना रहा है। नेक्स्ट ऑर्बिट और टावर सेमीकंडक्टर संयुक्त रूप से कर्नाटक में फैब यूनिट की योजना पर काम कर रहे है। टाटा टेक्नोलॉजी चिप पैकेजिंग और डिज़ाइन में तेज़ी से आगे बढ़ रही है। उत्तर प्रदेश के जेवर में भी एचसीएल- फोक्सकॉन की वफ़र फेब्रिकेशन यूनिट का कार्य प्रगति पर हैं। भारत पहले से ही चिप डिजाईन के हब के रूप में कार्य कर रहा है। चिप डिजाईन के क्षेत्र में लगभग 20 प्रतिशत से अधिक इंजीनियर भारतीय हैं। इंटेल, कुआलकॉम, मीडिया टेक, टेक्सास इंस्ट्रूमेंट्स, एनविडिया जैसी कंपनियों के अनुसंधान और विकास केंद्र भारत में हैं।

भारत को वैश्विक सेमीकंडक्टर चिप आपूर्ति शृंखला में बड़ी भूमिका निभाने का मौका है। 2030 तक भारत का लक्ष्य है कि वह 300 बिलियन डॉलर का इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन करे, जिसमें से चिप्स महत्वपूर्ण हिस्सा होंगे। भारत धीरे-धीरे चिप डिज़ाइन से मैन्युफैक्चरिंग की तरफ अपने कदम बढ़ा रहा है।

भारत का सेमीकंडक्टर उद्योग अभी एक महत्वपूर्ण दौर से गुजर रहा है - सरकार द्वारा प्रोत्साहन, निवेश, मांग, कौशल विकास आदि के कारण इस क्षेत्र में काफी नए अवसर हैं। भारत में बढते औद्योगिकीकरण से सेमीकंडक्टर उपयोग की मांग 2025 से 2030 के बीच लगभग 15 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ने की उम्मीद है। अभी सेमीकंडक्टर से सम्बंधित बाजार का आकार लगभग 45-50 अरब डॉलर है जो 2030 तक बढ़कर 100-110 अरब डॉलर तक बीच पहुँच सकता है। ऑटोमोबाइल, इलेक्ट्रिक व्हीकल, डेटा सेंटर्स इत्यादि क्षेत्रों में वृद्धि इलेक्ट्रिक वाहनों, 5जी/6जी नेटवर्क, नेटवर्क इन्फ्रास्ट्रक्चर, कृत्रिम बुधि व डेटा सेंटर्स की मांग बढ़ेगी; ये सब सेमीकंडक्टर की जरूरत को और बढ़ाएँगे। क्योंकि भारत इन क्षेत्रों में तेजी से निवेश कर रहा है।

भारत सरकार ने इंडिया सेमीकंडक्टर मिशन (आईएसएम) शुरू की है, जिसमें केद्र एवं राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय प्रोत्साहन, निवेश की मंज़ूरी, टैक्स और सब्सिडी आदि शामिल हैं। उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजनाएँ (पीएलआई) और राज्य सरकारों की नीतियाँ प्रोत्साहन की ज़मीन तैयार कर रही हैं। जिससे बड़े वैश्विक सेमीकंडक्टर निर्माता और बहुराष्ट्रीय कंपनिया भारत में अपने यूनिट्स लगाना चाह रही हैं। इस मिशन का लक्ष्य यह है कि भारत वैश्विक सेमीकंडक्टर वैल्यू चेन में महत्वपूर्ण स्थान बनाए और निर्यातक बने।

भविष्य में जो देश सेमीकंडक्टर तकनीक और व्यापार पर नियंत्रण रखेगा, वही दुनिया की अर्थव्यवस्था, सुरक्षा और तकनीकी नेतृत्व को निर्धारित करेगा। इसलिए यह कहना उचित होगा कि सेमीकंडक्टर का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार आने वाले दशकों में निर्णायक साबित होगा। यदि भारत समय रहते तकनीकी विशेषज्ञता और निवेश आकर्षित कर पाए, तो वह वैश्विक व्यापार का बड़ा केंद्र बन सकता है।          

 

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