इस वर्ष अगस्त 2025 में उत्तरकाशी में अत्यधिक वर्षा के कारण जो पहाड़ खिसकने, बाढ़ आने, पहाड़ों का मलबा गिरने, नदियों के उफान में गांव के गांव नष्ट होने का जो क्रम प्रारंभ हुआ वह समाप्त नहीं हो रहा। - विनोद जौहरी
इस विषय पर चर्चा करने से पूर्व वर्ष 2013 में गढ़वाल के चार धामों में केदारनाथ में सबसे भयानक आपदा का स्मरण करना आवश्यक जिसमे हज़ारों श्रद्धालु मृत्यु को प्राप्त हुए और उनके अवशेष तक नहीं मिले। केदारनाथ मंदिर को छोड़कर सम्पूर्ण नगर नष्ट हो गया और कुछ नहीं बचा। उनकी आत्मा को शांति की प्रार्थना के साथ अपने हृदय के उद्गार व्यक्त किए हैं।
भू-स्लखन और पर्वतीय क्षेत्रों में बड़ी प्राकृतिक आपदाओं के चर्चा करें तो वर्ष 2023 में जोशीमठ में पूरे नगर में सैंकड़ों मकानों और सड़कों में दरारें आ गयीं जिससे बड़ी संख्या में लोगों को जोशीमठ से विस्थापित होना पड़ा। वर्ष 2016 में पिथौरागढ़ के धारचूला और मुनीस्यारी में भारी भू-स्खलन हुआ और बड़ी संख्या में लोग विस्थापित हुए। वर्ष के 2018 में उत्तरकाशी में भटवाड़ी और यमुनोत्री में भू-स्लखन में भारी तबाही हुई। वर्ष 2019 में रुद्रप्रयाग में बहुगुणा नगर में दर्जनों घरों में दरारें आ गईं और उनको असुरक्षित घोषित कर दिया गया। वर्ष 2021 में चमोली के रैणी और तपोवन क्षेत्र में भू-स्लखन और धंसाव की बड़ी घटनाएं रिकॉर्ड की गयीं। वर्ष 2022 में ग्वालदम और थराली (चमोली) में बड़े स्तर पर धंसाव और भू-स्लखन के कारण बड़ी संख्या में लोगों को विस्थापित होना पड़ा।
उत्तराखण्ड विश्व के सबसे सुन्दर, रमणीक, प्राकृतिक भव्य और समृद्ध, हिंदू धर्म और संस्कृति को सहेजे एक अद्वितीय स्थान है जहाँ सम्पूर्ण भारत और विश्व के विभिन्न देशों से आए पर्यटक और श्रद्धालु यहाँ आते हैं। इस देवभूमि के निवासी भी इस देवलोक के धार्मिक संस्कृति और परंपराओं को आत्मसात करते इसके सौंदर्य को और भी सुंदर बनाते हैं। एक पर्यटक के रूप में इस देवभूमि के पवित्रता और सौंदर्य को समझना कठिन है और एक श्रद्धालु के लिए एक जीवन इस देवलोक को समझने के लिए कम है। जो उत्तराखंड के निवासी कई पीढ़ियों से यहाँ रह रहे हैं, उन्होंने पगडंडियों से हाईवे तक की जीवन यात्रा देखी और अपने कुलदेवताओं में अपना अस्तित्व देखा है। अपने जीवन के कुछ बहुमूल्य वर्ष भी यदि इस देवभूमि में बिताए हैं तो वह कालखंड इस जीवन के सबसे बहुमूल्य वर्ष स्मरण रहता है।
टिहरी, आसपास के कस्बों और गांवों के लिए एक बड़ी मंडी था और फलता फूलता सुंदर नगर था और मेरे ही सामने उसको उजाड़ दिया और मेरे ही सामने वह जलमग्न हो गया।
इस वर्ष ऋतु में उत्तराखंड से बार बार भू-स्लखन, सैकड़ों लोगों की अकाल मृत्यु, हज़ारों मवेशियों का बह जाना, बड़ी संख्या में घरों का भूमि में समा जाना, पूरा पूरा शहर नष्ट होना, कितना हृदय विदारक है। राष्ट्रीय समाचार पत्रों में यह विनाशलीला सीमित रूप से ही प्रकाशित होती है इसलिए उत्तराखंड के स्थानीय समाचार पत्रों और सूचनाओं को संकलित करने का प्रयास किया। यह सत्य है कि उत्तराखंड की प्रदेश सरकार, केंद्रीय सरकार और आपदा प्रबंधन सजगता से पीड़ितों को मानवीय सहायता पहुंचा रहे है और लोगों को सुरक्षित निकालने का प्रयास कर रहे हैं। केंद्र और राज्य सरकार तत्परता से उत्तराखंड में अतिवृष्टि से होने वाले नुकसान का आंकलन कर रही है। उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी लगातार आपदा पीड़ित क्षेत्रों का दौरा कर रहे हैं। परंतु विनाशलीला इससे कहीं भयानक है और छोटे-छोटे गांवों की अनगिनत सड़कें कट गयीं है जहाँ आपदा प्रबन्धन असंभव हो रहा है और मानवीय सहायता, राशन आदि पहुँचना भी सम्भव नहीं है।
उत्तराखंड आर्थिक दृष्टि से मूलतः कृषि प्रधान प्रदेश है जहाँ पर्वतीय क्षेत्रों में कृषि ही मुख्य आय सृजन का साधन है। इतनी अधिक वर्षा, बाढ़ और भू-स्लखन में जनजीवन के हानि के साथ कृषि और पशुधन का भी बहुत नाश हुआ है। इस बार के वर्षा ने स्थानीय सूत्रों के अनुसार पिछले 74 वर्षों का रिकॉर्ड तोड़ा है। सितंबर माह में औसत 167.50 मिलीमीटर से 109 प्रतिशत अधिक वर्षा का अनुमान है और इससे स्थिति और भी खराब हो सकती है। संकट अभी टला नहीं है।
हमारे वेद पुराणों में पर्यावरण की रक्षा, उसके साथ सामंजस्य और प्रकृति के नियम पालन करने के लिए सम्पूर्ण विवरण उपलब्ध है। फिर देवभूमि में ही क्यों प्रकृति की विनाशलीला हुई? उत्तराखंड की इस विनाशलीला को क्या कहें? प्रकृति का आक्रोश या जलवायु परिवर्तन या विशालकाय परियोजनाएँ, प्रकृति का दोहन या अनियमित शहरीकरण, धार्मिक स्थलों का अति व्यवसायीकरण या सारे उत्तराखंड में नदियों और झरनों के किनारे नदियों के भूमि पर अतिक्रमण करके होटल, जंगलों की कटाई, रिसोर्ट और शहर बसाने का पाप या यह सभी कारण एक साथ। पर्वतीय क्षेत्रों में जंगलों की कटाई भी बहुत प्रमुख कारण है। ऐसा नहीं है कि उत्तराखंड में केवल विकास योजनाओं और अनियमित विकास के क्षेत्रों में भू स्लखन, धँसाव और दरारों के घटनाएँ हुई हैं बल्कि निर्जन क्षेत्रों में भी भू स्लखन की घटनाएँ हुई हैं।
डी.बी.एस. कॉलेज देहरादून के प्रख्यात भूगर्भ शास्त्री एवं पूर्व विभागाध्यक्ष भूगर्भ विज्ञान श्री एम एन जोशी का मानना है कि पर्वतीय क्षेत्रों में अनियमित विकास विनाशलीला का प्रमुख कारण है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किए गए अध्ययन से ज्ञात होता है उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जंगलों की कटाई से प्रति वर्ष 28000 लोगों की अकाल मृत्यु होती है।
आपदाओं की चर्चा करें तो अभी हाल में उत्तरकाशी कें सिलक्यारा में सुरंग परियोजना में दुर्घटना हुई थी। 12 नवंबर 2023 को सुबह पांच बजे सिलक्यारा सुरंग में हादसा हो गया कि उत्तरकाशी की ध्वस्त सिलक्यारा- बड़कोट सुरंग में पिछले सप्ताह से फंसे 41 श्रमिकों को बचाने के लिए चल रहे ऑपरेशन में 17 दिन बाद सफलता हासिल हो पाई। सभी 41 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया। लगातार पांच मोर्चों पर काम चल रहा था। सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने मशीनों के लिए पहाड़ी की चोटी तक पहुंचने के लिए एक पहुंच मार्ग बनाया, जहां से एक लाइफ लाइन पाइप ड्रिल किया गया था।
इस वर्ष अगस्त 2025 में उत्तरकाशी में अत्यधिक वर्षा के कारण जो पहाड़ खिसकने, बाढ़ आने, पहाड़ों का मलबा गिरने, नदियों के उफान में गांव के गांव नष्ट होने का जो क्रम प्रारंभ हुआ वह समाप्त नहीं हो रहा। इसके अतिरिक्त सरकारी परियोजनाओं में भी भारी नुकसान हुआ और विद्युत परियोजनाओं में बड़े व्यवधान खड़े हुए। एक समय सात विद्युत परियोजनाओं में से सात ढकरानी, रामगंगा, छिबरो, खोदरी, ढालीपुर, चीला और ब्यासी में बिजली उत्पादन ठप्प हो गया था जिसके कारण 13 पॉवर हाउस केवल 63 मेगावाट की क्षमता पर चल रहे थे। बहुत कठिनाई से बिजली उत्पादन प्रारंभ हो सका। कुल्हाल, मोहम्मदपुर, तिलोथ, धरासू, खटीमा, पथरी में भी विद्युत उत्पादन ठप्प हो गया था। पिथौरागढ़ में धारचूला में भू-स्लखन से एनएचपीसी के 17 श्रमिक फँस गए, जिनको सुरक्षित बाहर निकाला गया।
ज्योतिर्मय में नीति बॉर्डर के मार्ग में सुराईकोठा से दस किलोमीटर आगे तमक का पुल बहने से चीन की सीमा तक सेना का आवागमन अवरुद्ध हो गया। चमोली जिले के गोपेश्वर में नन्दानगर में घरों और दुकानों में दरारें आने से लोग घर छोड़ने को विवश हैं। अतिवृष्टि के कारण जोशीमठ, थराली, मुनिस्यारी, ग्वाल्दम, यमुनोत्री, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, रैणी, भटवाड़ी, धारचूला में भू स्लखन के समाचार हैं। यमुनोत्री मार्ग पर स्यामाचट्टी में हाईवे पर मोटर पुल के ऊपर जल स्तर होने से उसके आसपास बने होटलों में पानी भर गया। एक समाचार के अनुसार अगस्त के अंतिम सप्ताह में 118 सड़कें बंद थीं जिसके कारण सहायता और बचाव कार्य बाधित हुए। रुद्रप्रयाग में बासुकेदार में अतिवृष्टि से दस गांवों में भारी क्षति हुई और आठ लोगों की मृत्यु हो गई। चमोली जिले के देवाल विकासखंड में मोपाटा गांव में अतिवृष्टि के बाद मकान धंस गए जिनमें दो पति पत्नी की मृत्यु हो गई और भगदड़ में कई लोग घायल हो गए। रुद्रप्रयाग के तालजमान, बगड़तोक और कमदटोक गांवों में अचानक गदेरे में पूरे गांव घिरने से भयानक स्थिति हो गई। घनसाली के बूढ़ाकेदार क्षेत्र में गेंवाली गांव में भरे नुकसान हुआ और सभी मोटर मार्ग बंद हो गए। कर्णप्रयाग में भी बद्रीनाथ मार्ग से मलबा आने के कारण कमेड़ा, उमटा और चटवापीपल में मार्ग बंद हो गए।
उत्तराखंड में 282 स्वचालित मौसम केंद्र खोलने का निर्णय प्रशंसनीय है। सरकार और नीति निर्माता उत्तराखंड की आपदाओं का जैसा चाहें, इसका आंकलन करें परंतु उत्तराखंड को बचाने के लिए सरकार को धरातल की परिस्थितियों के अनुसार दीर्घकालिक और अल्पकालिक, दोनों उपायों पर विचार करना होगा। उत्तराखंड में फिर से एक बार भूगर्भीय सर्वेक्षणों की रिपोर्ट खंगालनी होंगी और गांवों और नगरों के पुनर्वास को उसी के अनुसार कार्यान्वित करना होगा।
विनोद जौहरी, पूर्व अपर आयकर आयुक्त दिल्ली