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अमरीका से आयी आपदा को अवसर में बदलने का मौका है भारत के पास

निश्चित रूप से अमेरिका में काम कर रहे भारतीयों के लिए वापस लौटने और अपनी स्किल एवं आइडिया से स्वदेश में योगदान देने का मौका है। इससे ’आत्मनिर्भर भारत’ मुहिम को भी गति मिलेगी। — - डॉ. दिनेश प्रसाद मिश्र

 

अमरीकी राजनीति हमेशा से संरक्षणवादी रही है। वर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ‘अमेरिका फर्स्ट’ के नारे के साथ ही दोबारा सत्ता पर काबिज हुए हैं। अमरीकी राजनीति के जानकारों के बीच वे अवसर के हिसाब से दोहरी चाल के माहिर खिलाड़ी बताये जाते हैं। उनके इस डबल गेम का खामियाजा अमरीका के दोस्त-दुश्मन दोनों पर भारी पड़ता रहा है। अमरीकी राष्ट्रपति की हरकतों से भारत को भी कई बार नुकसान उठाना पड़ा है। आलम यह है कि एक तरफ वे भारत-अमरीका के बीच व्यापार समझौते के लिए बातचीत की टेबल पर भी बैठते हैं, तो दूसरी तरफ वे भारत पर अनैतिक रूप से अतिरिक्त टैरिफ लगाने की भी घोषणा कर देते हैं। भारत-पाकिस्तान के बीच हुए हालिया युद्ध के दौरान भी वे अपनी विवादित टिप्पणियों से बाज नहीं आए। बदलते वैश्विक परिदृश्य में दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारी यह मानते रहे हैं कि भविष्य की राह को आसान करने के लिए व्यापार समझौता न सिर्फ सूझबूझ वाला कदम है बल्कि दोनों देशों की जरूरत के लिहाज से भी जरूरी है। अमरीकी व्यापार प्रतिनिधि मंडल बेंडन लिंच की टीम समझौते को अमलीजामा पहनाने के लिए भारत दौरे पर आई थी, वहीं भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल की अमरीका यात्रा प्रस्तावित है। लग रहा था कि दोनों देशों के बीच सब कुछ ठीक चल रहा है लेकिन इसी बीच डोनाल्ड ट्रंप ने एच1बी वीजा पर एक लाख डॉलर की वार्षिक फीस लगाकर भारत को फिर से झटका दे दिया। अमरीका के इस कदम से भारतीय आईटी उद्योग के प्रभावित होने की आशंका है। लेकिन शायद ट्रंप और उनकी टीम यह आकलन करने में चूक कर रही है कि भारत अब दुनिया की गिनी चुनी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। भारत अपनी गौरवशाली चित्ति और मेधा के दम पर देश को आत्मनिर्भर बनाने की राह पर है। अमरीकी प्रशासन ने आर्थिक झटका देने की कोशिश की है लेकिन उसे यह ज्ञान होना चाहिए कि भारत के पास इस आपदा को अवसर में बदलने की सामर्थ्य है।

अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एच-1बी वीजा शुल्क को बढ़ाकर एक लाख डालर यानी करीब 88 लाख रुपये कर दिया है। हालांकि यह नया नियम केवल नए वीजा आवेदकों पर ही लागू होगा। यह कोई वार्षिक शुल्क नहीं है। जिन लोगों के पास पहले से ही एच-1बी वीजा है और जो इस समय अमेरिका से बाहर हैं, उनसे पुनः प्रवेश के लिए शुल्क नहीं लिया जाएगा। ट्रंप ने इस फैसले का बचाव अमेरिकी नौकरियों की सुरक्षा के लिए एक उपाय बताते हुए किया है। साथ ही तर्क दिया है कि आउटसोर्सिंग कंपनियों ने इस कार्यक्रम का इस्तेमाल अमरीकी कर्मचारियों की जगह सस्ते विदेशी कर्मचारियों को नियुक्त करने के लिए किया है। वहीं कई अमरीकी सांसदों और सामुदायिक नेताओं ने ट्रंप के इस फैसले को दुर्भाग्यपूर्ण और निरर्थक बताते हुए कहा है कि इससे अमरीकी आइटी उद्योग पर बहुत नकारात्मक असर पड़ेगा। यह अमेरिका को उच्चकोटि के कुशल कामगारों से वंचित करने वाला फैसला है। अमेरिका हर साल 65,000 एच-1बी वीजा और 20,000 अतिरिक्त वीजा देता है। इनमें से लगभग 70 प्रतिशत वीजा भारतीयों को मिलते हैं। एमेजोन, माइक्रोसाफ्ट और मेटा जैसी कंपनियों के हजारों कर्मचारी एच-1बी पर वहां काम करते हैं। वहीं कई भारतीय कंपनियां जैसे इन्फोसिस, टीसीएस, विप्रो, एचसीएल और काग्निजेंट भी अमेरिका में काम करने के लिए इसी वीजा पर काफी निर्भर हैं। ऐसे में कुशल कामगारों को नियुक्त करने वाली छोटी कंपनियां और स्टार्टअप्स ट्रंप के फैसले से मुश्किल में आ जाएंगे। वीजा शुल्क में इस बदलाव से अमेरिका में भारतीय आइटी इंजीनियरों की नौकरियों पर भी खतरा बढ़ेगा।

निश्चित रूप से ट्रंप का यह फैसला भारत के आइटी क्षेत्र और भारतीय प्रतिभाओं के लिए एक आपदा की तरह है, लेकिन यह कई मायनों में अवसर भी बन सकता है। ऐसे आसार हैं कि भारी वीजा शुल्क से अमेरिकी कंपनियां अपनी नौकरियां विदेश यानी भारत जैसे देशों में शिफ्ट करने पर मजबूर हो जाएंगी। ऐसा होने पर ट्रंप की यह नीति अमेरिका के बजाय भारत और दूसरे देशों के लिए फायदेमंद साबित हो सकती है। भारत में बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (जीसीसी) की स्थापना भी की जा सकती है और इसमें भारत की प्रतिभाओं को अधिक मौके मिलेंगे। जीसीसी जाब मार्केट में नया चलन है। यह आइटी सपोर्ट, कस्टमर सर्विस, फाइनेंस, एचआर और रिसर्च एंड डेवलपमेंट पर ध्यान केंद्रित करती हैं। हाईस्किल युवाओं के होने के कारण भारत जीसीसी के मामले में दुनिया का सबसे बड़ा हब बनता हुआ दिखा रहा है। दुनिया के 50 प्रतिशत जीसीसी सिर्फ भारत में हैं। अभी देश में 1700 जीसीसी हैं जिनसे 20 लाख से अधिक लोगों को रोजगार मिल रहा है। देश में जीसीसी बाजार का आकार 5.4 लाख करोड़ रुपये का है। 2030 तक इसके 8.4 लाख करोड़ रुपये तक पहुंचने की उम्मीद है। भारतीय जीडीपी में भारत के जीसीसी का योगदान एक प्रतिशत है और 2030 तक यह 3.5 प्रतिशत हो जाएगा।

एच-1बी वीजा शुल्क बढ़ने से दुनिया की प्रतिभाएं अमेरिका नहीं जा पाएंगी। इससे वहां इनोवेशन भी घट सकती है और भारत के इनोवेशन में नई जान आ सकती है। उम्मीद है पेटेंट, इनोवेशन और स्टार्टअप्स की अगली लहर भारत में तेजी से बढ़ेगी। भारत की प्रतिभाओं के भारत में ही रहने से भारत में शोध एवं विकास की स्थिति मजबूत होगी। ग्लोबल इनोवेशन इंडेक्स (जीआइआइ), 2024 में भारत अभी 39वें स्थान पर है। विश्व बौद्धिक संपदा संकेतक रिपोर्ट, 2024 के मुताबिक भारत ने तीन प्रमुख बौद्धिक संपदा अधिकारों (आइपी)-पेटेंट, ट्रेडमार्क और औद्योगिक डिजाइनों के लिए विश्व के शीर्ष 10 देशों में स्थान प्राप्त किया है। अब अमेरिकी आइटी कंपनियां भारतीय कंपनियों को ज्यादा आउटसोर्सिंग का काम दे सकती हैं। इससे भारत से अमेरिका के लिए काम बढ़ेंगे। भारत ग्लोबल आउटसोर्सिंग का नया हब बनने की डगर पर आगे बढ़ सकेगा। पिछले कई वर्षों से आउटसोर्सिंग के क्षेत्र में भारत की प्रगति के पीछे देश में संचार का मजबूत ढांचा होना एक प्रमुख कारण है। दूरसंचार उद्योग के निजीकरण से नई कंपनियों के अस्तित्व में आने से दूरसंचार की दरों में भारी गिरावट आई है। उच्च कोटि की त्वरित सेवा, आइटी एक्सपर्ट और अंग्रेजी में पारंगत युवाओं की बड़ी संख्या ऐसे अन्य कारण हैं, जिनकी बदौलत भारत पूरे विश्व में आउटसोर्सिंग के क्षेत्र में अग्रणी बना हुआ है।

निश्चित रूप से अमेरिका में काम कर रहे भारतीयों के लिए वापस लौटने और अपनी स्किल एवं आइडिया से स्वदेश में योगदान देने का मौका है। इससे ’आत्मनिर्भर भारत’ मुहिम को भी गति मिलेगी। ट्रंप द्वारा लगाई गई ऊंची फीस की आपदा को अवसर में बदलने के लिए हमें अन्य कई बातों पर भी ध्यान देना होगा। जैसे कि आउटसोर्सिंग के लिए अमेरिकी बाजार के साथ-साथ यूरोप और एशिया-प्रशांत क्षेत्र में नई व्यापक संभावनाओं को मुट्ठियों में लेना होगा। इसके लिए हमें देश में आउटसोर्सिंग के चमकीले भविष्य के लिए प्रतिभा निर्माण पर जोर देना होगा। इस बात से हम सभी वाकिफ हैं कि साफ्टवेयर उद्योग में हमारी अगुआई की मुख्य वजह हमारी सेवाओं और प्रोग्राम का सस्ता होना है। अतः इस स्थिति को बरकरार रखने के लिए हमें तकनीकी रूप से दक्ष लोगों की उपलब्धता बनाए रखनी होगी।  

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